अयोध्या में आज अक्षय तृतीया के अवसर पर एक ऐतिहासिक दृश्य देखने को मिलेगा. अयोध्या के प्रतिष्ठित हनुमान गढ़ी मंदिर के महंत प्रेमदास पहली बार रामलला के दर्शन के लिए मंदिर प्रांगण से बाहर निकलेंगे. यह वही परंपरा है, जो बीते दो शताब्दियों से चली आ रही थी, जिसके तहत हनुमान गढ़ी के ‘गद्दी नशीन’ महंत कभी भी मंदिर की 52 बीघा सीमा से बाहर नहीं जाते. हनुमान गढ़ी मंदिर के महंत को अयोध्या का संरक्षक माना जाता है और माना जाता है कि वे हमेशा मंदिर में मौजूद रहते हैं.
पीटीआई के मुताबिक हनुमान गढ़ी मंदिर के महंत आज सदियों से चली आ रही परंपरा से हटकर दर्शन करेंगे. मंहत प्रेमदास हाथी, घोड़े, ऊंट, चांदी के राजदंड और श्रद्धालुओं के जत्थे के साथ रथ पर सवार होकर नवनिर्मित राम मंदिर तक एक किलोमीटर की औपचारिक यात्रा करेंगे.
ऐसे में सवाल ये है कि हनुमान गढ़ी के महंत की ओर से इस अभूतपूर्व कदम के पीछे क्या कारण है? सदियों पुरानी परंपरा को क्यों तोड़ा जा रहा है? इतने सालों तक उन्हें किस बात ने रोका और क्या इसके पीछे कोई राजनीतिक संदेश भी है?
एजेंसी के मुताबिक अयोध्या निवासी प्रज्जवल सिंह ने बताया कि 18वीं शताब्दी में मंदिर की स्थापना के साथ शुरू हुई परंपरा इतनी सख्त थी कि ‘गद्दी नशीन’ को स्थानीय अदालतों में भी पेश होने से रोक दिया गया था. स्थानीय मान्यता के अनुसार भगवान राम ने पृथ्वी से प्रस्थान करते समय हनुमान जी को अपना राज्य सौंपा था, जिससे हनुमान जी अयोध्या के शाश्वत संरक्षक बन गए. महंत को हनुमान जी का जीवित प्रतिनिधि माना जाता है, इसलिए उन्हें मंदिर परिसर में ही रहना पड़ता है.
भगवान राम और हनुमान जी की मौजूदगी में शहर की रक्षा करना महंत अटूट कर्तव्य है. रिपोर्ट के मुताबिक मंदिर के ‘गद्दी नशीन’ के बाहर न जाने का नियम हनुमान गढ़ी के ‘संविधान’ में निहित है. जो 200 साल से भी पुराना है. हनुमान गढ़ी के लिए भूमि 1855 में अवध के अंतिम नवाब नवाब वाजिद अली शाह ने दान की थी.
क्या है यात्रा की वजह?
हनुमान गढ़ी के महंत ने वो वजह भी बताई कि उन्होंने ये फैसला क्यों लिया? महंत प्रेमदास ने बताया कि उन्हें बीते कई महीनों से बार-बार स्वप्न में भगवान हनुमान के दर्शन हो रहे थे, जिसमें उन्हें राम मंदिर जाकर रामलला के दर्शन का आदेश दिया गया. रिपोर्ट के अनुसार इसे ईश्वरीय निर्देश मानते हुए प्रेमदास ने निर्वाणी अखाड़े की 400 सदस्यीय पंचायत से अनुमति मांगी, जिसकी बैठक 21 अप्रैल को हुई और सर्वसम्मति से यात्रा को मंजूरी दी गई.
कैसा होगी भव्य यात्रा?
महंत प्रेमदास ने बताया कि वह आज सुबह 7 बजे एक रथ पर सवार होकर यात्रा प्रारंभ करेंगे. उनके साथ होंगे हाथी, घोड़े, ऊंट, चांदी के राजदंड, नागा साधु, और हजारों श्रद्धालु होंगे. फिर सरयू नदी में स्नान के बाद ‘छप्पन भोग’ का अर्पण किया जाएगा. फिर राम लला के ‘दर्शन’ करेंगे. उन्होंने कहा कि हम लोगों की समृद्धि और स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करेंगे.
क्या है राजनीतिक संकेत?
अक्षय तृतीया के अवसर पर मंदिर के महंत के राम मंदिर में अभूतपूर्व दौरे का धार्मिक महत्व है, लेकिन इसका राजनीतिक महत्व भी है. 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में आयोजित एक समारोह में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा, लाखों भक्तों के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था. ये पल सदियों के संघर्ष के बाद आया था. हनुमान गढ़ी ऐतिहासिक रूप से अपनी विशिष्ट धार्मिक पहचान और आध्यात्मिक तटस्थता को लेकर प्रतिबद्धता के कारण राम मंदिर आंदोलन से दूर रही है. मंदिर आंदोलन का समापन 2024 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राममंदिर के निर्माण के साथ हुआ.
2016 में जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी अयोध्या आए थे, तो उन्होंने राम जन्मभूमि स्थल पर जाने से बचते हुए हनुमान गढ़ी में पूजा-अर्चना करने का विकल्प चुना था. लेकिन राहुल उस स्थान से दूर रहे, जहां 1989 में कारसेवकों द्वारा राम मंदिर के लिए ‘शिलान्यास’ (आधारशिला) किया गया था. जो कि महज एक किलोमीटर दूर था. हालांकि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले हुई इस यात्रा को कांग्रेस के दिग्गजों ने ब्राह्मण-केंद्रित अभियान के रूप में देखा था. अब बुधवार को महंत की राम मंदिर यात्रा कुछ राजनीतिक हलकों का ध्यान आकर्षित कर सकती है. हर तरह से हनुमान गढ़ी के महंत की आज राम मंदिर यात्रा महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह सदियों पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए इतिहास रचेगी.