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Reading: नीतीश कुमार की सीधी चाल पड़ी उल्टी? वक्फ बिल के समर्थन से नाराज मुस्लिम नेताओं ने छोड़ी पार्टी – Ruckus over Waqf Bill in rajya sabha JDU due to Nitish kumar support ntc
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नीतीश कुमार की सीधी चाल पड़ी उल्टी? वक्फ बिल के समर्थन से नाराज मुस्लिम नेताओं ने छोड़ी पार्टी – Ruckus over Waqf Bill in rajya sabha JDU due to Nitish kumar support ntc
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नीतीश कुमार की सीधी चाल पड़ी उल्टी? वक्फ बिल के समर्थन से नाराज मुस्लिम नेताओं ने छोड़ी पार्टी – Ruckus over Waqf Bill in rajya sabha JDU due to Nitish kumar support ntc

BlogWire Team
Last updated: April 3, 2025 9:53 pm
By BlogWire Team
9 Min Read
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लंबी-चौड़ी बहस के बाद राज्यसभा में भी वक्फ संशोधन बिल पास हो गया. अब इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा, जहां से यदि मंजूरी मिलने के बाद ये कानून बन जाएगा. इससे पहले बिहार की सियासत में कई सवाल जोरो से गूंजने लगे हैं कि क्या संसद में वक्फ संशोधन बिल का समर्थन खुलकर करने का साइडइफेक्ट नीतीश कुमार को पार्टी के भीतर उठाना पड़ सकता है? क्या मुस्लिम वोट की जमीन बचाने के लिए अब तक बंटे हुए विपक्षी दल संसद में एक हो गए? कारण, वक्फ संशोधन बिल पर नीतीश कुमार की पार्टी के समर्थन के बाद मुस्लिम नेताओं में नाराजगी खुलकर सामने आई है. 

जेडीयू नेता और बिहार में शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन अफजल अब्बास ने कहा कि वक्फ बिल को लेकर मुस्लिम आवाम में गुस्सा है. बिहार में शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन, जो जेडीयू नेता भी हैं, उनका कहना है कि बिल का समर्थन करने से जो मुस्लिम जनता में है, उसे नीतीश कुमार को समझना होगा.

सवाल ही नहीं उठ रहे हैं बल्कि इस्तीफों का दौर भी चलने लगा है. नीतीश कुमार की पार्टी के वक्फ बिल के समर्थन में आने से जेडीयू अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रदेश सचिव मो नवाज मलिक ने इस्तीफा दे दिया. नवाज मलिक ने बिल के समर्थन को गलत बताया. इससे पहले जेडीयू के नेता कासिम अंसारी ने इस्तीफा दे दिया था. इनके अलावा जेडीयू के अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश महासचिव मोहम्मद तबरेज़ सिद्दीकी अलीग ने भी इस्तीफा नीतीश कुमार को भेज दिया.

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जेडीयू एमएलसी गुलाम गौस ने पहले ही सवाल उठाया था, और अब जेडीयू महासचिव गुलाम रसूल ने भी बिल के समर्थन का विरोध किया है.

दरअसल, नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू ने डटकर विपक्ष और मुस्लिम संगठनों के दबाव के बावजूद सरकार का साथ दिया है. कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता की दलील तक को नीतीश कुमार की पार्टी ने खारिज किया. अब पार्टी के मुस्लिम नेता ही नहीं, मुस्लिम धर्मगुरु भी जेडीयू को धोखेबाज कहकर सबक सिखाने की बात कर रहे हैं. नीतीश कुमार जो धर्मनिरपेक्षता की दलील देकर 2014 में मोदी के दिल्ली पहुंचने से पहले NDA से अलग हुए. जो हिंदू राष्ट्र की बात पर संविधान की दलील देते रहे. उन नीतीश कुमार की पार्टी ने खुलकर साथ वक्फ संशोधन बिल पर संसद में सरकार का दिया. 

बिहार चुनाव में हो सकता है बैकफायर?

अब सवाल उठता है कि क्या नीतीश कुमार का वक्फ बिल के समर्थन में पार्टी को खड़ा करना बैकफायर बिहार चुनाव में मुस्लिम वोट पर कर सकता है? मुस्लिमों के हित और विरोध का कठघरा खड़ा करके जब नीतीश कुमार की पार्टी को विरोधी दल और मुस्लिम संगठन घेर रहे हैं, तब संसद में पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष ने बड़ा बयान दिया है. संजय झा ने कहा है कि मुस्लिमों के लिए जो जेडीयू ने किया वो ना तो कांग्रेस कर पाई, ना आरजेडी. संजय झा ने राज्यसभा में चर्चा के दौरान कहा कि बिल पास होने से गरीब मुस्लिमों का फायदा होगा और पसमांदा वोटर जेडीयू के साथ रहेगा.

बता दें कि नीतीश कुमार वो राजनेता हैं जो सियासत में बदलता मौसम सबसे पहले भांपकर खुद पलटते रहे हैं. तो क्या बिहार के मुख्यमंत्री वक्फ बिल पर उस नुकसान को नहीं समझ पाए होंगे, जो विपक्ष जता रहा है. या फिर विपक्ष जिस मुस्लिम वोट के घाटे की बात जेडीयू के लिए कर रहा है, उसके नुकसान का पैमाना आंककर ही नीतीश कुमार ने समर्थन दिया है? या फिर एनडीए के साथ अब हमेशा जुड़कर सियासत की बात करने वाले नीतीश कुमार मान चुके हैं कि मुस्लिम वोट का फर्क नहीं पड़ेगा. इस सियासत को समझना है तो पहले नीतीश के मुस्लिम वोट का गणित जानना होगा. जो कहता है कि 2009 से 2015 के बीच तक मुस्लिम वोट का बड़ा हिस्सा नीतीश कुमार के गठबंधन को चुनाव में मिलता आया है.

मुस्लिम नेताओं ने अपने त्यागपत्र में लिखीं ये बातें

मो. कासिम अंसारी और मो. नवाज मलिक ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अलग-अलग पत्र लिखकर कहा कि उन्होंने मुसलमानों का वह विश्वास खो दिया है, जो यह मानते थे कि उनकी पार्टी धर्मनिरपेक्ष है. अंसारी ने हिंदी में लिखे पत्र में कहा कि मुझे दुख है कि मैंने इस पार्टी को अपने कई साल दिए. वहीं, मलिक ने कहा कि वक्फ बिल संविधान में दिए गए कई मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.

अंसारी ने अपने त्यागपत्र में लिखा, “मैं पूरे सम्मान के साथ कहना चाहता हूं कि हम जैसे लाखों भारतीय मुस्लिमों को यह अटूट विश्वास था कि आप पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के ध्वजवाहक हैं. लेकिन अब यह विश्वास टूट गया है. हम जैसे लाखों समर्पित भारतीय मुस्लिम और कार्यकर्ता जद(यू) के इस रुख से गहरे आहत हैं. भारतीय मुस्लिमों के खिलाफ है और इसे किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं किया जा सकता. न तो आप और न ही आपकी पार्टी इस बात को समझ रही है. मुझे अफसोस है कि मैंने इस पार्टी को अपने कई साल दिए.” 

दूसरी ओर, जेडीयू अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के राज्य सचिव मो. नवाज मलिक ने भी वक्फ बिल के समर्थन को लेकर नाराजगी जताते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया. नीतीश कुमार को लिखे अपने त्यागपत्र में मलिक ने लिखा, “लाखों भारतीय मुस्लिमों को अटूट विश्वास था कि आप पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के ध्वजवाहक हैं. लेकिन अब यह विश्वास टूट गया है. वक्फ संशोधन विधेयक पर जेडीयू के रुख से हम जैसे समर्पित भारतीय मुस्लिम और पार्टी कार्यकर्ता गहरे आहत हुए हैं. जिस तरह लोकसभा में ललन सिंह ने इस बिल का समर्थन किया, उससे हम निराश हैं.”

नीतीश की पार्टी को मिलता रहा मुस्लिम वोट

2009, 2010 तक तो नीतीश कुमार बीजेपी के साथ लड़ने पर भी बिहार में 21 से 62 पीसदी तक मुस्लिम वोट पाते रहे, जो धीरे धीरे NDA के साथ चुनाव लड़ने में घटता रहा. लेकिन मुस्लिम बाहुल्य सीट पर नीतीश कुमार की पार्टी को फिर भी वोट मिलते रहे. इसकी बड़़ी वजह ये रही कि नवंबर 2005 में सत्ता में आने के बाद से ही नीतीश के फैसलों में मुस्लिमों से जुड़े कई अहम दस्तकखत रहे. जैसे कब्रिस्तान की घेराबंदी, भागलपुर दंगे की न्यायिक जांच कमिटी का गठन, और 20 फीसदी के अति पिछड़ा आरक्षण के फ़ैसले को लागू करना, जिसमें मुस्लिम समुदाय के तबके भी शामिल थे. 2006 से 2014 के बीच नीतीश कुमार ने पांच मुस्लिम नेताओं को राज्यसभा भेजा. इनमें चार पसमांदा मुस्लिम थे. लेकिन अब सियासत और परिस्थिति बदल रही हैं. तब क्या वक्फ बिल के समर्थन से नीतीश का बचा हुआ मुस्लिम वोट भी कम हो सकता है? 

संभव है कि बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार के वक्फ बिल के समर्थन करने से भी फायदा तेजस्वी या कांग्रेस ना पाए. इसके कुछ कारण पर गौर करने की जरूरत है. बिहार में पिछली बार AIMIM के वोट काटने से RJD चाहकर भी सरकार नहीं बना पाई. अबकी बार बिहार में ओवैसी की पार्टी के साथ ही प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी भी है. नवंबर 2024 में बिहार में 4 सीटों पर उपचुनाव हुए, जहां पीके की पार्टी के वोट काटने-बांटने से, चारो्ं सीट NDA जीती. ऐसे में क्या नीतीश कुमार समझ रहे हैं कि जो मुस्लिमों के मुद्दे पर पहले वो फैसले लेते रहे हैं, उससे जुड़ा वोट उन्हें मिलता रहेगाा, बाकी मुस्लिम वोट बंटने से विपक्ष को बहुत फायदा नहीं होने वाला?

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