<p style="text-align: justify;">स्कूल खुलते ही एक बार फिर अभिभावकों की चिंता का विषय फीस बन गई है. पढ़ाई का नया सत्र शुरू होते ही देशभर के करोड़ों पैरंट्स इस सवाल से जूझ रहे हैं कि आखिर बच्चों को बेहतर शिक्षा देने की कीमत इतनी भारी क्यों होती जा रही है? हाल ही में लोकल सर्कल्स की तरफ से कराए गए सर्वे में यह चिंता खुलकर सामने आई है.</p>
<p style="text-align: justify;">इस सर्वे में देश के 309 जिलों से 31,000 से ज्यादा अभिभावकों ने हिस्सा लिया, जिनमें 38% महिलाएं थीं. आंकड़े चौंकाने वाले हैं 44% पैरंट्स ने बताया कि उनके बच्चों के स्कूल की फीस पिछले तीन साल में 50% से 80% तक बढ़ चुकी है. कुछ शहरों में तो यह बढ़ोतरी और भी ज्यादा है. रिपोर्ट्स के अनुसार हैदराबाद में प्राइमरी स्कूलों की एडमिशन फीस दोगुनी हो गई है, जबकि बेंगलुरु में पैरंट्स 10% से 30% तक की बढ़ोतरी को लेकर नाराज हैं.</p>
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<p style="text-align: justify;">रिपोर्ट्स के अनुसार, पैरंट्स का कहना है कि हर साल बिना किसी कारण के स्कूल फीस बढ़ा दी जाती है. जबकि स्कूल प्रशासन इसे शिक्षकों की सैलरी और अन्य खर्चों का हवाला देकर जायज ठहराता है. फिलहाल सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा गर्माया हुआ है. पैरेंट्स और कई संस्थानें सोशल मीडिया के माध्यम से फीस बढ़ाने का कड़ा विरोध कर रहे हैं.</p>
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<p style="text-align: justify;"><strong>बने सख्त कानून</strong></p>
<p style="text-align: justify;">सर्वे में 93% पैरंट्स ने अपनी राज्य सरकार को फीस कंट्रोल करने में नाकाम बताया है और मांग की है कि सरकार इस मुद्दे पर सख्त कानून बनाए. सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि राज्य सरकारें फीस तो नहीं तय कर सकतीं लेकिन मुनाफाखोरी और अनावश्यक बढ़ोतरी को रोकने के लिए कदम जरूर उठा सकती हैं.</p>
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स्कूल की फीस बनी मिडिल क्लास की मुसीबत, कुछ ही साल में 80% तक बढ़ोतरी
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