पूरा देश जीतने के बाद भी बीजेपी के लिए उस बंगाल को जीतना अब भी एक सपने के जैसा है, जो उसके पितृ पुरुष श्यामा प्रसाद मुखर्जी का गृह राज्य है. जनसंघ बनाने वाले श्यामा प्रसाद मुखर्जी की जिस विचारधारा ने पार्टी को वो खाद-पानी दिया कि बीजेपी के तौर पर वो दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बन गई, वही बीजेपी बंगाल में अब भी एक अदद जीत के लिए तरस रही है. शायद यही वजह है कि अब बीजेपी ने अगले साल बंगाल में होने वाले चुनाव के लिए एक और राम मंदिर आंदोलन करने का ऐलान किया है. क्या है पूरी कहानी बताएंगे विस्तार से.
1984 के लोकसभा चुनाव में महज दो सीटें जीतने वाली बीजपी ने जब 1989 के पालमपुर अधिवेशन में राम मंदिर आंदोलन को अपना मुद्दा बनाया तो बीजेपी कहां से कहां पहुंच गई ये किसी से छिपा नहीं है. पहले हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और मध्यप्रदेश फिर उत्तर प्रदेश, फिर दिल्ली और उसके बाद गुजरात होते हुए बीजेपी पूरे देश में काबिज हुई, लेकिन बंगाल तब भी उससे अछूता रहा. बीजेपी ने बंगाल जीतने की हर मुमकिन कोशिश की, कांग्रेस से लेकर टीएमसी तक के बड़े-बड़े नेताओं को तोड़ दिया, लेकिन तब भी जीत नसीब नहीं हुई.
अब जब बंगाल में विधानसभा चुनाव में करीब एक साल का वक्त बचा है तो बीजेपी फिर से बंगाल जीतने की कोशिश कर रही है और इस बार उसका सबसे बड़ा सहारा राम मंदिर है, लेकिन ये राम मंदिर अयोध्या वाला राम मंदिर नहीं है. ये राम मंदिर कभी ममता के खास सिपहसालार रहे और अब बीजेपी के कद्दावर नेताओं में शुमार शुवेंदु अधिकारी का राम मंदिर है, जिन्होंने 2021 में ममता बनर्जी को नंदीग्राम में विधानसभा चुनाव में मात देने के बाद बंगाल बीजेपी के सबसे बड़े नेता के तौर पर खुद को दर्ज करवाया है.
शुवेंदु अधिकारी ने नंदीग्राम में एक भव्य राम मंदिर की आधारशिला रखी है. रामनवमी पर उसका पूजन भी कर दिया है और दावा कर दिया है कि नंदीग्राम का राम मंदिर पूरे बंगाल का सबसे बड़ा राम मंदिर होगा. अभी बीती हुई रामनवमी के दौरान जुलूस में जिस तरह की भीड़ उमड़ी, शुवेंदु अधिकारी उस भीड़ में बीजेपी के वोटर तलाश रहे हैं, जिन्हें राम के नाम पर ठीक उसी तरह से एकजुट किया जा सकता है, जैसा अयोध्या में हुआ था. क्या अयोध्या के जरिए पूरे देश में जो हुआ, बंगाल भी उस मॉडल को अपनाएगा, ये अपने आप में एक बड़ा सवाल है. बाकी सवाल तो अयोध्या को लेकर भी उठ ही रहे हैं कि मंदिर आंदोलन के नाम पर जीतने वाली बीजेपी मंदिर बनने के बाद 240 सीटों पर क्यों सिमट गई और उससे भी बड़ा सवाल कि वही अयोध्या क्यों हार गई, जहां राम मंदिर है.
शुवेंदु अधिकारी बंगाल के राम मंदिर, नंदीग्राम के राम मंदिर के नाम पर वोटरों को जुटा पाएंगे, इसको लेकर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी. हां राम मंदिर के नाम पर लोगों को जुटाना और मंदिर निर्माण के लिए कारसेवकों को बुलाने के दौरान शायद तस्वीर थोड़ी साफ हो सकेगी. बाकी तो अभी बंगाल वाले इस मंदिर को बीजेपी के आलाकमान की मंजूरी है या नहीं, ये भी साफ नहीं है, क्योंकि अभी तक इस मंदिर का जिक्र सिर्फ शुवेंदु अधिकारी ने ही किया है तो अभी इस मंदिर पर आलाकमान की भी मुहर लगनी बाकी ही है. आगे-आगे देखिए होता है क्या.
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