कोलकाता3 मिनट पहले
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ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को POCSO और IPC की धाराओं के तहत दोषी ठहराया था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के बाद अब कलकत्ता हाईकोर्ट ने कहा है कि नशे की हालत में नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट छूने की कोशिश करना, प्रिवेंशन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेंस (POCSO) एक्ट के तहत रेप की कोशिश नहीं है।
हालांकि, कोर्ट ने इसे गंभीर यौन उत्पीड़न की कोशिश माना लेकिन आरोपी को जमानत दे दी। मामले की सुनवाई जस्टिस अरिजीत बनर्जी और जस्टिस बिस्वरूप चौधरी की डिवीजन बेंच (खंडपीठ) कर रही थी।
दरअसल, ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को POCSO एक्ट की धारा 10 और IPC की धारा 448/376(2)(c)/511 के तहत दोषी ठहराया था। कोर्ट ने उसे 12 साल जेल और 50 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई थी।
इसके खिलाफ आरोपी ने ऊपरी अदालत याचिका लगाई थी। इसके साथ ही आरोपी ने कहा था दो साल से ज्यादा समय तक जेल में बंद होने का तर्क देकर जमानत मांगी थी।
इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी 19 मार्च को इसी तरह का फैसला दिया था। कोर्ट ने कहा था कि किसी नाबालिग के ब्रेस्ट पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना या घसीटकर पुलिया के नीचे ले जाने की कोशिश रेप या रेप की कोशिश नहीं है।

कोर्ट ने माना- पेनेट्रेशन के सुबूत नहीं आरोपी ने अपनी याचिका में कहा था कि उसे झूठे मामले में फंसाया गया है। सबूत बलात्कार की कोशिश के आरोप का समर्थन नहीं करते हैं। भले ही पीड़ित, जांच करने वाले डॉक्टर और अन्य गवाहों के सबूतों को सच मान लिया हो लेकिन आरोप साबित नहीं होते हैं।
आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि पेनेट्रेशन के बिना IPC की धारा 376 के तहत अपराध नहीं माना जा सकता है। ज्यादा से ज्यादा POSCO एक्ट की धारा 10 के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न का मामला बन सकता है। इसके लिए निर्धारित सजा 5 से 7 साल है।
वकील ने कहा कि आरोपी ने सजा का का एक बड़ा हिस्सा पूरा कर लिया है, इसलिए उसे जमानत मिलनी चाहिए। इस पर कोर्ट ने पाया कि पीड़ित के दिए सुबूतों में पेनेट्रेशन के संकेत नहीं मिलते। इस पर कोर्ट ने माना कि स्तन पकड़ने की कोशिश बलात्कार की कोशिश के बजाय गंभीर यौन उत्पीड़न का मामला हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद HC के फैसले पर रोक लगाई थी

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें HC ने कहा गया था कि नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट पकड़ना और उसके पायजामे के नाड़े को तोड़ना रेप या अटेम्प्ट टु रेप नहीं है।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने 26 मार्च को कहा, “यह बहुत गंभीर मामला है और जिस जज ने यह फैसला दिया, उसकी तरफ से बहुत असंवेदनशीलता दिखाई गई। हमें यह कहते हुए बहुत दुख है कि फैसला लिखने वाले में संवेदनशीलता की पूरी तरह कमी थी।”
वहीं, केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- सुप्रीम कोर्ट का फैसला पूरी तरह से सही है। कुछ फैसलों को रोकने के कारण होते हैं।