Ahmadi Community in Pakistan: पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों के दमन की एक और भयावह घटना सामने आई है. पंजाब प्रांत में अहमदिया समुदाय के 50 से अधिक सदस्यों पर ईशनिंदा कानून के तहत FIR दर्ज की गई क्योंकि उन्होंने शुक्रवार की नमाज अदा की.
पुलिस के अनुसार, कट्टरपंथी इस्लामी संगठन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) के समर्थकों ने कई शहरों में अहमदियों के पूजा स्थलों को घेर लिया और उन्हें नमाज अदा करने से रोका. इसके बाद, मुहम्मद अमानुल्लाह नामक व्यक्ति की शिकायत पर पुलिस ने पाकिस्तान दंड संहिता (PPC) की धारा 298-बी और 298-सी के तहत FIR दर्ज की. FIR में आरोप लगाया गया कि अहमदी समुदाय के लोग मुसलमानों की तरह नमाज अदा कर रहे थे, खुद को मुसलमान बता रहे थे, साथ ही अपने धर्म को इस्लाम के रूप में प्रचारित कर रहे थे.
अहमदिया समुदाय पर क्यों हो रहे हैं अत्याचार ?
पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय को 1974 में संविधान संशोधन के जरिए गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया गया था. 1984 में तानाशाह जिया-उल-हक़ के शासनकाल में ईशनिंदा कानूनों को कठोर बनाया गया, जिसके तहत अहमदिया समुदाय खुद को मुसलमान नहीं कह सकते, वे इस्लामी प्रतीकों का उपयोग नहीं कर सकते, मस्जिद जैसी संरचनाएं नहीं बना सकते और सार्वजनिक रूप से इस्लाम की शिक्षाओं का पालन नहीं कर सकते. अहमदियों को धार्मिक अधिकारों से वंचित करने के लिए कट्टरपंथी संगठनों और पाकिस्तानी सरकार का गठजोड़ लंबे समय से जारी है.
जमात-ए-अहमदिया ने क्या कहा?
जमात-ए-अहमदिया पाकिस्तान (JAP) ने इन हमलों और FIR की कड़ी निंदा की. प्रवक्ता आमिर महमूद ने कहा,”धार्मिक चरमपंथी अहमदियों को उनके धार्मिक अनुष्ठान करने से रोकना चाहते हैं. यह पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 20 और मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा का उल्लंघन है.”उन्होंने यह भी सवाल उठाया, “क्या कट्टरपंथी गुटों के इशारे पर अहमदियों के खिलाफ झूठे मामले दर्ज करना राष्ट्र के हित में है?”
क्या पाकिस्तान में धार्मिक स्वतंत्रता संकट में है?
बता दें कि पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर लगातार हमले, झूठे ईशनिंदा के मामले और हिंसा बढ़ती जा रही है.2023 में 200 से अधिक ईशनिंदा के मामले दर्ज हुए थे.वहीं, पिछले साल पंजाब प्रांत में अहमदी मस्जिदों को गिरा दिया गया था. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन लगातार पाकिस्तान पर धार्मिक स्वतंत्रता के हनन का आरोप लगा रहे हैं.