नई दिल्ली5 दिन पहले
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सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर बीते 2 दिन से ‘फंड कावेरी इंजन’ ट्रेंड कर रहा है। यूजर्स कावेरी प्रोजेक्ट को तेज करने और इसके लिए अधिक फंडिंग की मांग कर रहे हैं।
भारत के डिफेंस टेक्नोलॉजी सेक्टर में ये एक महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट है जिसकी शुरुआत 1980 के दशक में हुई थी। स्वदेशी लड़ाकू विमानों और ड्रोनों में इस स्वदेशी इंजन का इस्तेमाल होगा।
सवाल 1: कावेरी इंजन क्या है?
जवाब: कावेरी इंजन भारत का एक स्वदेशी टर्बोफैन जेट इंजन है, जिसे डिफेंस रिसर्स एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (DRDO) के अंतर्गत गैस टर्बाइन रिसर्स इस्टैबलिशमेंट (GTRE) द्वारा विकसित किया जा रहा है। इसका नाम दक्षिण भारत की कावेरी नदी के नाम पर रखा गया है।
यह इंजन लगभग 80 किलो न्यूटन (kN) थ्रस्ट जनरेट कर सकेगा। इसे मूल रूप से हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) के लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (LCA) तेजस के लिए डिज़ाइन किया गया था। यह इंजन हाई टेंपरेचर और हाई स्पीड कंडीशन्स में भी थ्रस्ट लॉस को कम करने के लिए फ्लैट-रेटेड डिजाइन का उपयोग करता है।
कावेरी इंजन प्रोजेक्ट की शुरुआत 1980 के दशक में हुई थी। 1989 में भारत सरकार ने इसके लिए 382.21 करोड़ रुपए का बजट स्वीकृत किया था।

GTRE को कावेरी इंजन के डिजाइन और डेवलपमेंट का काम सौंपा गया है।
सवाल 2: कावेरी इंजन का उद्देश्य क्या है?
जवाब: कावेरी इंजन का प्राइमरी गोल भारत को मिलिट्री एविएशन टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनाना है। वर्तमान में भारत अपने तेजस जैसे लड़ाकू विमानों के लिए अमेरिका जैसे देशों से इंजन आयात करता है। कावेरी इंजन का विकास इस निर्भरता को खत्म करेगा।
सवाल 3: कावेरी इंजन के क्या फीचर्स हैं?
जवाब: कावेरी इंजन में कई एडवांस्ड टेक्नोलॉजिकल फीचर्स हैं, जो इसे एक मॉडर्न जेट इंजन बनाता हैं:
- लो-बायपास टर्बोफैन डिजाइन: यह हायर थ्रस्ट और फ्यूल एफिशिएंसी प्रदान करता है।
- फ्लैट-रेटेड डिजाइन: इससे इंजन उच्च तापमान और गति में भी स्टेबल परफॉर्मेंस करता है।
- ट्विन-स्पूल कॉन्फ़िगरेशन: यह इंजन की एफिशिएंसी और पावर को बढ़ाता है।
- एडवांस्ड मटेरियल्स: इसमें सिंगल क्रिस्टल ब्लेड्स, निकेल सुपरलॉय और एडवांस्ड कूलिंग टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाता है, जो भारत की एक्सट्रीम क्लाइमेट कंडीशन्स (रेगिस्तान की गर्मी से लेकर हिमालय की ठंड) में भी प्रभावी है।
- डबल लेन फुल अथॉरिटी डिजिटल इंजन कंट्रोल (FADEC): यह इंजन के प्रदर्शन को ऑप्टिमाइज करता है और मैनुअल बैकअप के साथ विश्वसनीयता सुनिश्चित करता है।

कावेरी इंजन प्रोजेक्ट की शुरुआत 1980 के दशक में हुई थी।
सवाल 4: कावेरी इंजन प्रोजेक्ट में क्या चुनौतियां आईं?
जवाब: कावेरी इंजन प्रोजेक्ट को कई तकनीकी और बाहरी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है..
- थ्रस्ट की कमी: इंजन का लक्ष्य 81 kN थ्रस्ट था, लेकिन यह केवल 70-75 kN तक पहुंच सका। ये तेजस जैसे लड़ाकू विमानों के लिए जरूरी 85 kN थ्रस्ट से कम था।
- 1998 के परमाणु परीक्षणों के बाद प्रतिबंध: भारत के परमाणु परीक्षणों के बाद लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों ने टेक्निकल सपोर्ट और मटेरियल सप्लाई को प्रभावित किया।
- कॉम्प्लेक्स टेक्नोलॉजी: जेट इंजन मैन्युफैक्चरिंग में एयरोथर्मल डायनामिक्स, मटेरियल साइंस और एडवांस्ड मेटलर्जी जैसी हाई-लेवल टेक्नोलॉजी की जरूरत होती है।
- इन कारणों से 2008 में कावेरी इंजन को तेजस प्रोग्राम से अलग कर दिया गया, और तेजस में अमेरिकी GE F404 इंजन का उपयोग किया गया।

सवाल 5: कावेरी इंजन का वर्तमान उपयोग क्या है?
जवाब: कावेरी इंजन के रूस में फ्लाइट टेस्ट चल रहे हैं। इंजन पर करीब 25 घंटे का परीक्षण होना बाकी है। स्लॉट मिलने पर टेस्टिंग की जाएगी। ये टेस्ट रियल वर्ल्ड कंडीशन में इंजन परफॉर्मेंस का मूल्यांकन करने के लिए महत्वपूर्ण हैं। तेजस से अलग होने के बाद, कावेरी इंजन को अनमैन्ड एरियल व्हीकल्स यानी ड्रोन्स में लगाने के लिए किया जा रहा है। इसका ड्राई वेरिएंट 49-51 kN थ्रस्ट जनरेट करता है।
सवाल 6: अभी कितने देशों के पास जेट इंजन बनाने की तकनीक है?
दुनिया के सिर्फ चार देश अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस ही लड़ाकू विमान के इंजन बना पाते हैं। चीन ने कुछ जेट इंजन जरूर बनाए हैं, लेकिन वो भी रिवर्स इंजीनियरिंग करके। आज भी चीन अपने लड़ाकू विमानों के लिए इंजन रूस से लेता है। इन्हें बना पाना इतना मुश्किल इसलिए है क्योंकि यह 1400 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाता है। ऐसे में इन पुर्जों को काम का बनाए रखना बड़ी चुनौती होती है।