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Reading: How did ISRO’s most successful rocket fail | इसरो का सबसे भरोसेमंद रॉकेट कैसे हुआ फेल: PSLV-C61 मिशन के थर्ड स्टेज में खराबी आई, ये इसरो का 101वां लॉन्च था; जानें वजह
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How did ISRO’s most successful rocket fail | इसरो का सबसे भरोसेमंद रॉकेट कैसे हुआ फेल: PSLV-C61 मिशन के थर्ड स्टेज में खराबी आई, ये इसरो का 101वां लॉन्च था; जानें वजह
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How did ISRO’s most successful rocket fail | इसरो का सबसे भरोसेमंद रॉकेट कैसे हुआ फेल: PSLV-C61 मिशन के थर्ड स्टेज में खराबी आई, ये इसरो का 101वां लॉन्च था; जानें वजह

BlogWire Team
Last updated: May 18, 2025 12:13 pm
By BlogWire Team
11 Min Read
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श्रीहरिकोटा1 घंटे पहले

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इसरो का PSLV-C61 मिशन तकनीकी खराबी के कारण फेल हो गया। इस मिशन में EOS-09 अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट को 524 किलोमीटर की सन-सिंक्रोनस पोलर ऑर्बिट में स्थापित किया जाना था।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी, इसरो का PSLV-C61 मिशन तकनीकी खराबी के कारण फेल हो गया। इस मिशन में EOS-09 अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट को 524 किलोमीटर की सन-सिंक्रोनस पोलर ऑर्बिट में स्थापित किया जाना था। इसरो का यह 101वां लॉन्च मिशन था। इसरो ने मिशन फेल होने के कारणों का पता लगाने के लिए एक कमेटी बनाई है।

PSLV-C61 का लॉन्च 18 मई को सुबह 5:59 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किया गया।

PSLV-C61 का लॉन्च 18 मई को सुबह 5:59 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किया गया।

खबर में आगे बढ़ने से पहले इन टेक्निकल शब्दों के बारे में जान लीजिए जिससे पूरी खबर को समझना आसान हो जाएगा:

पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल: PSLV इसरो का एक भरोसेमंद रॉकेट है, जो सैटेलाइट्स को पृथ्वी की कक्षा, खासकर पोलर और सन-सिंक्रोनस ऑर्बिट (600-800 Km) में लॉन्च करता है। यह चार स्टेज (सॉलिड और लिक्विड इंजन) वाला लॉन्च व्हीकल है, जो रिमोट सेंसिंग, कम्युनिकेशन और साइंटिफिक मिशन्स के लिए इस्तेमाल होता है।

ग्राउंड-लिट स्ट्रैप-ऑन मोटर्स: रॉकेट के एडिशनल बूस्टर इंजन होते हैं, जो लॉन्च के समय जमीन पर ही इग्नाइट होकर रॉकेट को शुरुआती थ्रस्ट देते हैं। ये PSLV जैसे रॉकेट के मुख्य कोर के साथ जुड़े होते हैं और लिफ्ट-ऑफ के लिए जरूरी ताकत देते हैं।

ऑनबोर्ड इंस्ट्रूमेंटेशन: यह रॉकेट या सैटेलाइट पर लगे सेंसर और उपकरण हैं, जैसे एक्सलरोमीटर, गायरोस्कोप और इनर्शियल मेजरमेंट यूनिट (IMU), जो रियल-टाइम में गति, दिशा, ऊंचाई और अन्य डेटा मापते हैं। यह डेटा टेलीमेट्री के जरिए ग्राउंड स्टेशन को भेजा जाता है, ताकि मिशन की स्थिति और ट्रैजेक्ट्री को मॉनिटर किया जा सके।

टेलीमेट्री: यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें रॉकेट या सैटेलाइट से डेटा (जैसे गति, ऊंचाई, दबाव, ओरिएंटेशन) को रियल-टाइम में ग्राउंड स्टेशन तक रेडियो सिग्नल के जरिए भेजा जाता है। यह डेटा मिशन की निगरानी और विश्लेषण के लिए जरूरी होता है।

ऊपर की लाइन रॉकेट की स्पीड बता रही है। वहीं नीचे की लाइन ऊंचाई को बताती है। नीचे की तरफ जो T और I लिखा है उसमें T का मतलब ट्रैकिंग और I का मतलब इंस्ट्रूमेंटेशन है।

ऊपर की लाइन रॉकेट की स्पीड बता रही है। वहीं नीचे की लाइन ऊंचाई को बताती है। नीचे की तरफ जो T और I लिखा है उसमें T का मतलब ट्रैकिंग और I का मतलब इंस्ट्रूमेंटेशन है।

ग्राउंड-बेस्ड ट्रैकिंग: वह प्रक्रिया है जिसमें रडार, एंटीना और ग्राउंड स्टेशनों का उपयोग करके रॉकेट या सैटेलाइट की स्थिति, गति और दिशा को रियल-टाइम में ट्रैक किया जाता है। यह ऑनबोर्ड इंस्ट्रूमेंटेशन डेटा से अलग होता है और मिशन को मॉनिटर करने में मदद करता है।

क्लोज लूप गाइडेंस: एक ऑटोमेटिक कंट्रोल सिस्टम है, जिसमें रॉकेट का ऑनबोर्ड कंप्यूटर रियल-टाइम डेटा का एनालिसिस कर ट्रैजेक्ट्री, थ्रस्ट और ओरिएंटेशन को कोऑर्डिनेट करता है। यह सुनिश्चित करता है कि रॉकेट ग्राउंड कंट्रोल की मदद के बिना निर्धारित कक्षा में सटीकता से पहुंचे।

मिशन की शुरुआत: सब कुछ सामान्य

PSLV-C61 का लॉन्च आज यानी, 18 मई को सुबह 5:59 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से किया गया। लॉन्च के शुरुआती चरणों में सब कुछ योजना के अनुसार चल रहा था। काउंटडाउन, फर्स्ट स्टेज इग्निशन, लिफ्ट-ऑफ और सॉलिड मोटर्स का प्रदर्शन सामान्य था।

चार ग्राउंड-लिट स्ट्रैप-ऑन मोटर्स और सेंट्रल कोर ने ठीक उसी तरह काम किया, जैसा कि अनुमान था। इसके बाद एयर-लिट स्ट्रैप-ऑन मोटर्स का इग्निशन भी समय पर हुआ और रॉकेट अपनी निर्धारित ट्रैजेक्ट्री पर आगे बढ़ रहा था।

सेकेंड स्टेज ने भी पूरी तरह से सामान्य प्रदर्शन किया। इसमें लिक्विड फ्यूल पर चलने वाले विकास इंजन का उपयोग होता है। इस दौरान ऑनबोर्ड इंस्ट्रूमेंटेशन और ग्राउंड-बेस्ड ट्रैकिंग डेटा पूरी तरह से एक-दूसरे के साथ मेल खा रहे थे, जो दिखा रहा था कि रॉकेट अपनी गति और ऊंचाई हासिल कर रहा है।

लॉन्च के शुरुआती चरणों में सब कुछ योजना के अनुसार चल रहा था।

लॉन्च के शुरुआती चरणों में सब कुछ योजना के अनुसार चल रहा था।

कहां हुई चूक: थर्ड स्टेज में गड़बड़ी

मिशन में समस्या तब शुरू हुई, जब रॉकेट अपने तीसरे चरण (PS3) में पहुंचा, जो एक सॉलिड मोटर है। इसरो के अनुसार, थर्ड स्टेज का इग्निशन 262.9 सेकेंड पर सामान्य रूप से हुआ।

शुरुआती डेटा में सब कुछ ठीक दिखाई दे रहा था। इस दौरान रॉकेट की ऊंचाई 344.9 किलोमीटर, गति 5.62 किमी/सेकेंड और रेंज 888.4 किलोमीटर थी। हालांकि 376.8 सेकेंड के बाद टेलीमेट्री डेटा में गड़बड़ दिखाई देने लगी।

इसरो के ग्राउंड स्टेशनों पर दो प्रकार के डेटा का एनालिसिस किया जाता है:

  1. ऑनबोर्ड इंस्ट्रूमेंटेशन डेटा, जो रॉकेट के इनर्शियल मेजरमेंट यूनिट (IMU), एक्सलरोमीटर्स और गायरोस्कोप से मिलता है।
  2. ग्राउंड-बेस्ड ट्रैकिंग डेटा, जो रडार और एंटीना सिस्टम के माध्यम से रॉकेट की स्थिति को ट्रैक करता है।

इन दोनों डेटा सोर्स को ग्राफ में दिखाया जाता है, जहां ग्रीन लाइन ऑनबोर्ड इंस्ट्रूमेंटेशन और यलो लाइन ट्रैकिंग डेटा को दर्शाती है।

मिशन के शुरुआती चरणों में ग्रीन और यलो लाइनें पूरी तरह से ओवरलैप कर रही थीं, जो यह दर्शा रहा था कि रॉकेट का प्रदर्शन ठीक है, लेकिन थर्ड स्टेज के दौरान लगभग 376.8 सेकेंड पर, ये दोनों लाइनें अलग होने लगीं।

ऑनबोर्ड सेंसर्स से डेटा दिखाने वाली ग्रीन लाइन में जिगजैग पैटर्न और डेविएशन दिखाई देने लगा। वहीं ट्रैकिंग डेटा दिखाने वाली यलो लाइन एक अलग स्थिति बता रही थी। यह डेविएशन इस बात का संकेत था कि कुछ गड़बड़ी हो गई है।

यहां ग्रीन लाइन ऑनबोर्ड इंस्ट्रूमेंटेशन और यलो लाइन ट्रैकिंग डेटा को दर्शा रही है। अगर मिशन में सब कुछ योजना के अनुसार हो तो दोनों लाइन ओवरलैप होकर चलती है। यहां शुरुआत में तो लाइन ओवरलैप होकर चल रही थी, लेकिन थर्ड स्टेज के बाद दोनों लाइन अलग-अलग हो गईं जो गड़बड़ी को दर्शाता है।

यहां ग्रीन लाइन ऑनबोर्ड इंस्ट्रूमेंटेशन और यलो लाइन ट्रैकिंग डेटा को दर्शा रही है। अगर मिशन में सब कुछ योजना के अनुसार हो तो दोनों लाइन ओवरलैप होकर चलती है। यहां शुरुआत में तो लाइन ओवरलैप होकर चल रही थी, लेकिन थर्ड स्टेज के बाद दोनों लाइन अलग-अलग हो गईं जो गड़बड़ी को दर्शाता है।

संभावित कारण: थ्रस्ट में असमानता या डेटा ट्रांसमिशन की गड़बड़ी

थर्ड स्टेज के दौरान रॉकेट क्लोज लूप गाइडेंस मोड में था, जिसमें ऑनबोर्ड कंप्यूटर रियल-टाइम डेटा के आधार पर स्वतंत्र रूप से निर्णय लेता है।

इस मोड में, इनर्शियल मेजरमेंट यूनिट, ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) और अन्य सेंसर्स रॉकेट के ओरिएंटेशन, थ्रस्ट और ट्रैजेक्ट्री को नियंत्रित करते हैं, लेकिन इस मिशन में, ऑनबोर्ड सिस्टम द्वारा भेजा गया डेटा ट्रैकिंग डेटा से मेल नहीं खा रहा था।

विश्लेषकों का मानना है कि इस डेविएशन के कई संभावित कारण हो सकते हैं:

  • सेंसर फेलियर: ऑनबोर्ड सेंसर्स, जैसे IMU या एक्सलरोमीटर्स, में खराबी के कारण गलत डेटा से डेविएशन हो सकता है।
  • एल्गोरिदम एरर: क्लोज लूप गाइडेंस सिस्टम में इसेतेमाल एल्गोरिदम में मिसकैलकुलेशन या डेटा प्रोसेसिंग में एरर हो सकता है।
  • थ्रस्ट असामान्यता: थर्ड स्टेज के सॉलिड मोटर में प्रेशर ड्रॉप या नोजल की समस्या हो सकती है, जिसके कारण अपेक्षित थ्रस्ट जनरेट नहीं हुआ।
  • डेटा ट्रांसमिशन एरर: टेलीमेट्री सिस्टम में कोई गड़बड़ी, जिसके कारण ऑनबोर्ड डेटा सही ढंग से ग्राउंड स्टेशन तक नहीं पहुंचा।

इस डेविएशन के बाद रॉकेट ने अपनी ट्रैजेक्ट्री को गलत तरीके से एडजस्ट करना शुरू कर दिया, जिसके कारण यह अपनी निर्धारित कक्षा में नहीं पहुंच सका। चौथे चरण (PS4) का इग्निशन भी हुआ, लेकिन तब तक मिशन की सफलता संभव नहीं थी। फाइनली मिशन को बीच में ही रद्द करना पड़ा और रॉकेट व सैटेलाइट को नष्ट कर दिया गया।

इसरो चेयरमैन: फेलियर एनालिसिस कमेटी कारणों का पता लगाएगी

इसरो के चेयरमैन वी. नारायणन ने बताया कि थर्ड स्टेज के बाद मिशन में अनॉमली देखी गई, जिसके कारण EOS-09 सैटेलाइट को कक्षा में स्थापित नहीं किया जा सका। उन्होंने कहा, “हमने इस असफलता के कारणों का पता लगाने के लिए एक फेलियर एनालिसिस कमेटी बनाई है।

ये कमेटी टेलीमेट्री डेटा, ऑनबोर्ड सिस्टम लॉग्स और ग्राउंड ट्रैकिंग डेटा का डिटेल्ड एनालिसिस करेगी। लाखों बिट्स डेटा का अध्ययन कर हम सटीक कारणों का पता लगाएंगे और भविष्य के मिशनों के लिए सुधार करेंगे।”

इसरो चेयरमैन ने कहा- तीसरे चरण के दौरान मोटर केस के चैम्बर प्रेशर में गिरावट आ गई थी जिस कारण मिशन पूरा नहीं हो सका।

इसरो चेयरमैन ने कहा- तीसरे चरण के दौरान मोटर केस के चैम्बर प्रेशर में गिरावट आ गई थी जिस कारण मिशन पूरा नहीं हो सका।

सैटेलाइट का इस्तेमाल एग्रीकल्चर, फॉरेस्ट्री और आपदा प्रबंधन में होना था

PSLV रॉकेट के साथ भेजा गया 1,696.24 किलोग्राम वजनी EOS-09 सैटेलाइट इसरो के अर्थ ऑब्जर्वेशन प्रोग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था। इसका उद्देश्य एग्रीकल्चर, फॉरेस्ट्री और आपदा प्रबंधन में अनुप्रयोगों के लिए हाई-रिजोल्यूशन इमेजरी प्रदान करना था।

PSLV की विश्वसनीयता पर सवाल?

पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल इसरो का सबसे भरोसेमंद रॉकेट रहा है। इसे “वर्कहॉर्स” भी कहा जाता है। इसका सक्सेस रेट लगभग 96% है। यह रॉकेट भारत के साथ-साथ ग्लोबल कस्टमर्स के सैटेलाइट्स को कक्षा में स्थापित करने में सक्षम रहा है।

इसरो ने पहले भी असफलताओं से सबक लिया है। उदाहरण के लिए, 2021 में EOS-03 मिशन की असफलता के बाद, क्रायोजेनिक स्टेज के टैंक में प्रेशर की समस्या का पता लगाया गया था, और उसके आधार पर सुधार किए गए थे। इस बार भी इसरो की टीम प्रक्षेपण से पहले की तैयारियों, लॉन्च प्रक्रिया और ऑनबोर्ड सिस्टम के सभी डेटा लॉग्स का गहन विश्लेषण करेगी।

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