How Astronauts Survive In Space: सांस लेना दुनिया का सबसे जरूरी काम है. अगर कोई इंसान कुछ सेकेंड के लिए भी सांस लेना रोक दे तो उसकी मौत हो जाती है. मैदानी इलाकों में हमें पर्याप्त ऑक्सीजन मिल जाती है, लेकिन जैसे-जैसे हम ऊपर की ओर जाते हैं तो ऑक्सीजन का लेवल कम होता जाता है और फिर हमें ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एस्ट्रेनॉट्स अपने साथ कितनी ऑक्सीजन लेकर जाते हैं और अगर मिशन फेल हो जाए तो ये कैसे जिंदा रहेंगे. आइए बताते हैं.
कैसे जिंदा रहते हैं एस्ट्रोनॉट्स
धरती से सिर्फ 120 किलोमीटर की ऊंचाई तक ही ऑक्सीजन उपलब्ध है. ऐसे में अंतरिक्ष में ऑक्सीजन होने का तो सवाल ही नहीं उठता है. तब बिना ऑक्सीजन के कोई एक्ट्रोनॉट कैसे जिंदा रहेगा. अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण बल काम नहीं करता है. अगर ये अंतरिक्ष में काम करता तो गैसों को बांधे रखता, जिससे ऑक्सीजन मिल पाती. लेकिन यहां ऑक्सीजन है ही नहीं तो एस्ट्रोनॉट कैसे सांस लेते हैं.
अंतरिक्ष में कितनी ऑक्सीजन लेकर जाते हैं एस्ट्रोनॉट्स
अंतरिक्ष यात्रियों के लिए डिजाइन किए गए स्पेसक्राफ्ट में ऑक्सीजन की पूरी व्यवस्था होती है. इसलिए जितनी देर वो अपने स्पेसक्राफ्ट में हैं तो उनको अलग से ऑक्सीजन सिलेंडर कैरी करने की कोई जरूरत नहीं होती है. अगर वो स्पेसक्राफ्ट से बाहर निकलते हैं, तो उनको ऑक्सीजन सिलेंडर लेना पड़ता है. उनके लिए अलग तरीके का स्पेससूट भी बनाया जाता है, जिसमें ऑक्सीजन की पूरी व्यवस्था होती है. इस सूट में ऑक्सीजन और नाइट्रोजन दो तरह के सिलेंडर होते हैं. ये सूट उनको ऑक्सीजन सप्लाई करने और सांस लेने में मदद करता है.
मिशन फेल होने पर कैसे जिंदा रहेंगे एस्ट्रोनॉट्स
ऐसे में ये एस्ट्रोनॉट्स जो कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं उसे फिल्टर करने के लिए स्पेसशिप में स्क्रबर लगे होते हैं. स्पेस मिशन में हमेशा ऑक्सीजन सिलेंडर का बैकअप जरूर होता है. अगर मिशन फेल हो जाए या कोई गड़बड़ी हो तो इसका इस्तेमाल किया जा सके. हर एस्ट्रोनॉट के पास एक छोटा पोर्टेबल ऑक्सीजन सिलेंडर होता है, जो कि इमरजेंसी में इस्तेमाल होता है.