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नई दिल्ली12 मिनट पहले
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सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के ‘नाबालिग लड़की के ब्रेस्ट पकड़ना और उसके पजामे के नाड़े को तोड़ना रेप नहीं…’ फैसले पर मंगलवार को खुद से नोटिस लिया।
जस्टिस बीआर गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच बुधवार को इस मामले की सुनवाई करेगी। इससे पहले इसी केस पर दायर एक याचिका पर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया था। याचिका में जजमेंट के विवादित हिस्से को हटाने की मांग की गई थी।
इस फैसले पर कानूनी विशेषज्ञों, राजनेताओं और अलग-अलग क्षेत्रों के एक्सपर्ट्स के विरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हुआ है।
पहले जानिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्या कहा था किसी लड़की के निजी अंग पकड़ लेना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ देना और जबरन उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश से रेप या ‘अटेम्प्ट टु रेप’ का मामला नहीं बनता।
सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ये फैसला सुनाते हुए 2 आरोपियों पर लगी धाराएं बदल दीं। 3 आरोपियों के खिलाफ दायर क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन स्वीकार कर ली थी।

4 साल पुराना मामला, मां ने दर्ज कराई थी FIR दरअसल, कासगंज की एक महिला ने 12 जनवरी, 2022 को कोर्ट में एक शिकायत दर्ज कराई थी। आरोप लगाया कि 10 नवंबर, 2021 को वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ कासगंज के पटियाली में देवरानी के घर गई थीं। उसी दिन शाम को अपने घर लौट रही थीं। रास्ते में गांव के रहने वाले पवन, आकाश और अशोक मिल गए।
पवन ने बेटी को अपनी बाइक पर बैठाकर घर छोड़ने की बात कही। मां ने उस पर भरोसा करते हुए बाइक पर बैठा दिया। लेकिन रास्ते में पवन और आकाश ने लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ लिया। आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करते हुए उसके पायजामे की डोरी तोड़ दी।
लड़की की चीख-पुकार सुनकर ट्रैक्टर से गुजर रहे सतीश और भूरे मौके पर पहुंचे। आरोपियों ने देसी तमंचा दिखाकर दोनों को धमकाया और फरार हो गए। इसके बाद, जब पीड़िता की मां आरोपी पवन के पिता अशोक के घर गईं, तो उन्होंने गाली-गलौज और धमकी दी। जब पुलिस ने FIR दर्ज नहीं की, तो उन्होंने अदालत का रुख किया। आरोपियों ने निचली अदालत के आदेशों के खिलाफ हाईकोर्ट की शरण ली।

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि आरोपियों पर ‘अटेम्प्ट टु रेप’ का चार्ज हटाया जाए। उन पर यौन उत्पीड़न की अन्य धाराओं के तहत केस चलेगा। (प्रतीकात्मक चित्र)
पीड़ित की मां FIR दर्ज कराने गई, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की
जब पीड़ित बच्ची की मां आरोपी पवन के घर शिकायत करने पहुंची, तो पवन के पिता अशोक ने उसके साथ गालीगलौज की और जान से मारने की धमकी दी। महिला अगले दिन थाने में FIR दर्ज कराने गई। जब पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो उसने अदालत का रुख किया।
21 मार्च 2022 को कोर्ट ने आवेदन को शिकायत के रूप में मानकर मामले को आगे बढ़ाया। शिकायतकर्ता और गवाहों के बयान रिकॉर्ड किए गए। आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ IPC की धारा 376, 354, 354B और POCSO एक्ट की धारा 18 के तहत केस दर्ज किया गया। वहीं आरोपी अशोक पर IPC की धारा 504 और 506 के तहत केस दर्ज किया।
आरोपियों ने समन आदेश से इनकार करते हुए हाईकोर्ट के सामने पुनरीक्षण दायर किया। यानी कोर्ट से कहा कि इन आरोपों पर दोबारा विचार कर लेना चाहिए। जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की सिंगल बेंच ने क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन स्वीकार कर ली।

इलाहाबाद हाईकोर्ट में 17 मार्च को सुनवाई हुई।
सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था बॉम्बे हाईकोर्ट का ऐसा ही फैसला
19 नवंबर, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच का फैसला पलट दिया था। कहा था कि किसी बच्चे के यौन अंगों को छूना या यौन इरादे से शारीरिक संपर्क से जुड़ा कोई भी कृत्य पॉक्सो एक्ट की धारा 7 के तहत यौन हमला माना जाएगा। इसमें महत्वपूर्ण इरादा है, न कि त्वचा से त्वचा का संपर्क।
बॉम्बे हाईकोर्ट की एडिशनल जज पुष्पा गनेडीवाला ने जनवरी, 2021 में यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि किसी नाबालिग पीड़िता के निजी अंगों को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना टटोलना पॉक्सो में अपराध नहीं मान सकते। हालांकि बाद में इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया।
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किसी लड़की के निजी अंग पकड़ लेना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ देना और जबरन उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश से रेप या ‘अटेम्प्ट टु रेप’ का मामला नहीं बनता। सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ये फैसला सुनाते हुए दो आरोपियों पर लगी धाराएं बदल दीं। क्या है पूरा मामला, कोर्ट ने क्यों कहा रेप की कोशिश और तैयारी में फर्क है और इस फैसले का क्या इम्पैक्ट होगा; पढ़िए पूरी खबर…