चेन्नई2 मिनट पहले
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परिसीमन का विरोध करने के लिए स्टालिन ने कुछ दिन पहले तमिलनाडु में ऑल पार्टी मीटिंग की थी।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिने ने परिसीमन मामले में अन्य राज्यों के मौजूदा और पूर्व मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखी है। इसमें उन्होंने 22 मार्च को होने वाली JAC की पहली बैठक में अपने प्रतिनिधि भेजने का अनुरोध किया है, ताकि परिसीमन मुद्दे पर साझा रणनीति बनाई जा सके।
परिसीमन और ट्राई लैंग्वेज पॉलिसी के विरोध में स्टालिन ने 5 मार्च तमिलनाडु में सर्वदलीय की थी। बैठक में इस मुद्दे पर जॉइंट एक्शन कमेटी (JAC) बनाने का फैसला हुआ था। JAC परिसीमन में राज्यों का प्रतिनिधित्व बचाने और प्रक्रिया ईमानदारी से पूरी हो, इसके लिए काम करेगी।

स्टालिन- परिसीमन से कम जनसंख्या वाले राज्यों को नुकसान चिट्ठी में स्टालिन ने चेतावनी दी है कि परिसीमन से तमिलनाडु जैसे कम जनसंख्या वाले राज्यों पर असर पड़ेगा। उन्होंने लिखा कि देश में 1952, 1963 और 1973 में परिसीमन हुआ था। 1976 में परिसीमन को साल 2000 के बाद होने वाली पहली जनगणना तक रोक दिया गया। वहीं, 2002 में परिसीमन पर 2026 तक रोक बढ़ा दी गई थी।
2021 की जनगणना में देरी के वजह से परिसीमन तय समय से पहले हो सकता है। इससे अपनी जनसंख्या नियंत्रित रखने वाले राज्य प्रभावित हो सकते हैं। स्टालिन ने दक्षिण में केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक, पूर्वी राज्यों में पश्चिम बंगाल और ओडिशा और उत्तर में पंजाब से JAC में शामिल होने के लिए उनकी औपचारिक सहमति मांगी है।
परिसीमन का आधार 1971 की जनगणना हो सर्वदलीय बैठक में स्टालिन ने कहा था कि अगर संसद में सीटें बढ़ती है तो 1971 की जनगणना को आधार बनाया जाए। उन्होंने भी मांग की- 2026 के बाद अगले 30 साल तक लोकसभा सीटों के बाउंड्री करते समय 1971 की जनगणना को ही मानक माना जाए।
इस बैठक में AIADMK, कांग्रेस, वाम दल (लेफ्ट पार्टी) और एक्टर विजय की पार्टी TVK समेत कई दलों ने हिस्सा लिया था। वहीं, भाजपा, NTK और पूर्व केंद्रीय मंत्री जीके वासन की तमिल माणिला कांग्रेस (मूप्पनार) ने बैठक का बहिष्कार किया। पूरी खबर पढ़ें…

परिसीमन क्या है? परिसीमन यानी लोकसभा और विधानसभा सीट की सीमा तय करने की प्रक्रिया। परिसीमन के लिए आयोग बनता है। पहले भी 1952, 1963, 1973 और 2002 में आयोग गठित हो चुके हैं।
लोकसभा सीटों को लेकर परिसीमन प्रक्रिया की शुरुआत 2026 से होगी। ऐसे में 2029 के लोकसभा चुनाव में लगभग 78 सीटों के इजाफे की संभावना है। दक्षिणी राज्यों ने जनसंख्या आधारित परिसीमन का विरोध किया है। इसलिए सरकार समानुपातिक परिसीमन की तरफ बढ़ेगी, जिसमें जनसंख्या संतुलन बनाए रखने का फ्रेमवर्क तैयार हो रहा है।
परिसीमन का फ्रेमवर्क क्या होगा? परिसीमन आयोग से पहले सरकार ने फ्रेमवर्क पर काम शुरू कर दिया है। प्रतिनिधित्व को लेकर मौजूदा व्यवस्था से छेड़छाड़ नहीं होगी, बल्कि जनसांख्यिकी संतुलन को ध्यान में रखकर एक ब्रॉडर फ्रेमवर्क पर विचार जा रहा है।
सीटों में क्या बदलाव होगा तमिलनाडु-पुडुचेरी में लोकसभा की 40 सीट है। उत्तर प्रदेश में वर्तमान की 80 सीटों से 14 सीट बढ़ती हैं तो इसकी आधी यानी 7 सीट तमिलनाडु-पुडुचेरी में बढ़ाना समानुपातिक प्रतिनिधित्व है। अर्थात सीट बढ़ाने के लिए जनसंख्या ही एक मात्र विकल्प नहीं है।
आबादी के आधार पर जितनी सीटें हिंदी पट्टी में बढ़ेंगी उसी अनुपात में जनसंख्या नियंत्रण करने वाले राज्यों में भी सीटें बढ़ेगी। किसी लोकसभा में 20 लाख की आबादी पर एक सांसद होगा तो दूसरी जगह 10-12 लाख की आबादी पर एक सांसद होगा।

अल्पसंख्यक बहुल सीटों का क्या होगा? देश के 85 लोकसभा सीटों में अल्पसंख्यकों की आबादी 20%से 97%तक है। सूत्रों के अनुसार इन सीटों पर जनसांख्यिकी संतुलन कायम रखने के लिए परिसीमन के तहत लोकसभा क्षेत्रों को नए सिरे से ड्रा किया जा सकता है।
महिला आरक्षण के बाद क्या होगा? 1977 से लोकसभा सीटों की संख्या को फ्रीज रखा गया है, लेकिन अब महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने के बाद इसे डिफ्रीज करना लाजमी है। जनसंख्या वृद्धि दर में प्रभावी नियंत्रण करने वाले राज्यों ने चेतावनी दी है कि इस आधार पर उनकी सीटों में कमी का विरोध होगा।
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